SEBI का बड़ा फैसला: IPO और MPS नियमों में ढील, FPI रजिस्ट्रेशन के लिए सिंगल विंडो शुरू करने का ऐलान

Mon Sep 15, 2025

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) का बड़ा फैसला

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने 12 सितंबर को हुई बोर्ड मीटिंग में कई महत्वपूर्ण सुधारों को मंजूरी दी। इसमें आईपीओ से जुड़े नियमों में ढील, न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (MPS) को पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय, और विदेशी निवेशकों के लिए निवेश प्रक्रिया को सरल बनाना शामिल है।

इसके अलावा, REITs और InvITs को इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स का दर्जा देकर सेबी ने इन निवेश साधनों को और आकर्षक बना दिया है। साथ ही, अब बड़ी कंपनियों को भी छोटे साइज के आईपीओ लाने की सुविधा होगी, जिससे वे आसानी से बाजार से पूंजी जुटा सकेंगी।

सेबी की बोर्ड बैठक में लिए गए अहम फैसले

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की शुक्रवार को हुई बैठक में आईपीओ और MPS नियमों में बड़े बदलाव किए गए।

  • 50,000 करोड़ से 1 लाख करोड़ रुपये के पूंजीकरण वाली कंपनियों को आईपीओ में 8% इक्विटी जारी करनी होगी (पहले 10% थी)।
  • न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (MPS) का 25% लक्ष्य पाने की अवधि 3 साल से बढ़ाकर 5 साल कर दी गई है।
  • 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य वाली कंपनियों के लिए अनिवार्य प्रस्ताव 2.75% इक्विटी निर्गम और 5 लाख करोड़ रुपये से ऊपर के मूल्यांकन पर यह सीमा 2.5% तय की गई है।
  • इन बड़ी कंपनियों को एमपीएस लक्ष्य हासिल करने के लिए अब 10 साल का समय मिलेगा।

एंकर निवेशकों के लिए नए नियम

  • 250 करोड़ रुपये से अधिक के एंकर हिस्से के लिए निवेशकों की संख्या 10 से बढ़ाकर 15 कर दी गई है।
  • कुल एंकर निवेश के लिए 40% हिस्सा आरक्षित रहेगा।
  • इसमें से एक-तिहाई घरेलू म्यूचुअल फंड्स को मिलेगा, जबकि शेष हिस्सा बीमा कंपनियों और पेंशन कोष के लिए तय किया गया है।
  • यदि बीमा और पेंशन फंड के लिए आरक्षित 7% हिस्सा नहीं भरा जाता, तो इसे म्यूचुअल फंड्स को आवंटित कर दिया जाएगा।

विदेशी निवेशकों के लिए नई सुविधा: ‘स्वागत-एफआई’

  • कम जोखिम वाले विदेशी निवेशकों को कई बार अनुपालन और दस्तावेज़ जमा करने की ज़रूरत नहीं होगी।
  • उन्हें एकीकृत पंजीकरण प्रक्रिया उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे निवेश की शुरुआत अधिक तेज़ और आसान हो सकेगी।
  • पंजीकरण की वैधता अवधि बढ़ाकर 10 साल कर दी गई है।
  • निवेशक अब एक ही डीमैट खाते में विभिन्न प्रकार के निवेश रखने का विकल्प भी पाएंगे।

इन फैसलों का मकसद बड़ी कंपनियों को छोटे आकार के आईपीओ लाने और सार्वजनिक हिस्सेदारी को धीरे-धीरे बढ़ाने की सुविधा देना है।

इस लेख में प्रयुक्त टर्मिनोलॉजी

1. REITs (Real Estate Investment Trusts)

  • REITs ऐसी कंपनियाँ होती हैं जो बड़े पैमाने पर आय-उत्पन्न करने वाली रियल एस्टेट संपत्तियों (जैसे मॉल, ऑफिस, अपार्टमेंट, होटल आदि) का स्वामित्व और संचालन करती हैं।
  • कैसे काम करती हैं: निवेशक इसमें शेयर खरीदकर अप्रत्यक्ष रूप से रियल एस्टेट में निवेश करते हैं और रेंट/लाभांश के रूप में आय पाते हैं।
  • महत्त्व: छोटे निवेशक भी बड़ी रियल एस्टेट परियोजनाओं में भाग ले सकते हैं और पारदर्शिता बढ़ती है।

2. InvITs (Infrastructure Investment Trusts)

  • InvITs ऐसी निवेश ट्रस्ट हैं जो इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स (जैसे हाईवे, पावर ट्रांसमिशन लाइनें, टोल रोड आदि) में निवेश के लिए बनाई जाती हैं।
  • कैसे काम करती हैं: इनकी यूनिटें शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध होती हैं और इनमें इक्विटी व डेब्ट दोनों का मिश्रण होता है।
  • महत्त्व: इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में निवेश को बढ़ावा और निवेशकों को स्थिर नकदी प्रवाह मिलता है।

3. न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (MPS)

  • MPS नियम के तहत सूचीबद्ध हर कंपनी को अपनी कम से कम 25% हिस्सेदारी सार्वजनिक शेयरधारकों के पास रखनी अनिवार्य है।
  • नियम: यदि प्रमोटरों की हिस्सेदारी 75% से अधिक है तो उन्हें इसे घटाना होगा।
  • महत्त्व: पारदर्शिता, लिक्विडिटी और निवेशकों की भागीदारी सुनिश्चित करना।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के बारे मे

  • स्थापना: 12 अप्रैल 1992 को भारत सरकार द्वारा।
  • मुख्य उद्देश्य: निवेशकों के हितों की रक्षा करना और पूंजी बाजार का विकास।
  • शक्तियाँ: क्वासी-विधायी, क्वासी-न्यायिक और क्वासी-कार्यकारी।
  • मुख्यालय: मुंबई, क्षेत्रीय कार्यालय – अहमदाबाद, चेन्नई, दिल्ली और कोलकाता।

मुख्य पहलू

  • वैधानिक संस्था: SEBI Act, 1992 के तहत गठित।
  • निवेशक संरक्षण और पारदर्शिता।
  • बाजार विकास और दक्षता।
  • नियम बनाने, विवादों का निपटारा और नियम लागू करने की क्षमता।
  • स्टॉक एक्सचेंज, ब्रोकर, म्यूचुअल फंड, सूचीबद्ध कंपनियाँ और अन्य मध्यस्थों पर नियमन।