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Tue Sep 9, 2025
लाल सागर में बिछी समुद्री फाइबर ऑप्टिक केबलों के क्षतिग्रस्त होने से दुनिया भर के इंटरनेट नेटवर्क पर बड़ा असर पड़ा है। कई देशों में यूज़र्स को धीमी स्पीड और देरी का सामना करना पड़ रहा है। इस घटना का सीधा असर माइक्रोसॉफ्ट Azure जैसी क्लाउड सेवाओं पर भी देखा गया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यूरोप और एशिया के बीच इंटरनेट ट्रैफिक का बड़ा हिस्सा इन्हीं केबलों से होकर गुजरता है। यही कारण है कि इस क्षति के चलते वैश्विक इंटरनेट ट्रैफिक का लगभग 17% प्रभावित हुआ है। क्षतिग्रस्त सिस्टमों में SEACOM/TGN-EA, AAE-1 और EIG जैसी प्रमुख केबलें शामिल हैं। इन पर निर्भरता के चलते महाद्वीपों के बीच डेटा प्रवाह बुरी तरह बाधित हो गया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी पर गहरा असर पड़ा है।
माइक्रोसॉफ्ट ने बताया है कि वह लगातार स्थिति की निगरानी कर रहा है और ट्रैफिक को वैकल्पिक मार्गों से डायवर्ट करने की कोशिश की जा रही है। इसके बावजूद यूजर्स को धीमी इंटरनेट स्पीड और देरी का सामना करना पड़ रहा है।
सबसे ज्यादा असर एशिया-यूरोप इंटरनेट ट्रैफिक पर पड़ा है, जबकि अन्य मार्ग सामान्य रूप से काम कर रहे हैं। कंपनी ने कहा कि वह इस मामले पर रोज़ाना अपडेट देगी, लेकिन मरम्मत का काम पूरा होने में कई हफ्ते लग सकते हैं। इस स्थिति से खासकर बिजनेस यूजर्स और ऑनलाइन सेवाओं पर असर पड़ा है, जिससे कई कंपनियों को बड़े आर्थिक नुकसान उठाने पड़ सकते हैं।
दक्षिण-पूर्व एशिया–मध्य पूर्व–पश्चिमी यूरोप 4 (SMW4) समुद्री केबल में तकनीकी समस्या सामने आई है। यह नेटवर्क टाटा कम्युनिकेशंस सहित कई अंतरराष्ट्रीय टेलीकॉम कंपनियों के संयुक्त संचालन में चलता है। हालांकि, कंपनी की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
साल 2024 की शुरुआत में यमन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार ने हूती विद्रोहियों पर आरोप लगाया था कि वे लाल सागर में बिछी समुद्री इंटरनेट केबलों पर हमला करने की योजना बना रहे हैं। कुछ समय बाद कई केबलें सचमुच कट गईं, जिससे वैश्विक इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रभावित हुई। हालांकि हूती गुट ने जिम्मेदारी से इनकार किया, लेकिन उनकी ही उपग्रह चैनल अल-मसिराह ने हाल ही में इन कटाव की पुष्टि की और इस जानकारी का हवाला निगरानी समूह NetBlocks से दिया। जनवरी 2025 में जब इज़राइल-हमास के बीच अस्थायी युद्धविराम हुआ तो हूती हमले कुछ समय के लिए थमे। लेकिन इसके बाद उन्होंने फिर धमकियां देना शुरू कर दीं, जिससे लाल सागर क्षेत्र और वैश्विक इंटरनेट सुरक्षा पर लगातार खतरा बना हुआ है।
अंडरसी केबल्स (Submarine Communication Cables) समुद्र की गहराई में बिछाई गई फाइबर-ऑप्टिक केबल्स होती हैं, जिनका उपयोग महाद्वीपों के बीच डेटा संचारित करने के लिए किया जाता है। ये वैश्विक इंटरनेट की रीढ़ हैं और अंतरराष्ट्रीय संचार का अधिकांश हिस्सा इन्हीं पर निर्भर करता है।
उच्च बैंडविड्थ की वजह से ऑप्टिकल फाइबर में सैकड़ों गीगाबिट प्रति सेकंड तक डेटा ट्रांसमिशन संभव है, जिससे एक ही फाइबर के माध्यम से विशाल मात्रा में जानकारी भेजी जा सकती है। इन्हें सुरक्षात्मक परतों में पैक किया जाता है ताकि समुद्र की गहराई में दबाव, घिसाव और मछली पकड़ने जैसी गतिविधियों से होने वाले नुकसान से सुरक्षित रखा जा सके। लंबी दूरी तक डेटा ट्रांसफर को सक्षम बनाने के लिए मार्ग में निश्चित अंतराल पर रीपीटर्स लगाए जाते हैं, जो सिग्नल को amplify कर उसे degradation से बचाते हैं।
ऑप्टिकल फाइबर का सबसे बड़ा लाभ यह है कि ये इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफेरेंस से मुक्त होते हैं और बिजली के झटके, आंधी-तूफान व मौसम जैसी बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होते, जबकि कॉपर केबल्स इनसे प्रभावित हो जाते हैं। यही वजह है कि ऑप्टिकल फाइबर आज सबसे विश्वसनीय और तेज़ डेटा ट्रांसमिशन का माध्यम माने जाते हैं।
भारत के दो प्रमुख अंडरसी केबल लैंडिंग हब मुंबई और चेन्नई हैं। इनमें से मुंबई सबसे बड़ा केंद्र है, जहाँ कुल सबसी केबल ट्रैफिक का लगभग 95% संभाला जाता है, जो मुख्य रूप से वर्सोवा के छह किलोमीटर लंबे हिस्से से गुजरता है। वहीं, चेन्नई में लैंड होने वाली कई केबल्स भी मुंबई से जुड़ती हैं।
वर्तमान में भारत में 17 अंतरराष्ट्रीय केबल सिस्टम मौजूद हैं। इसके अलावा दो घरेलू परियोजनाएँ भी चल रही हैं —
अंडरसी केबल प्रोजेक्ट्स अत्यधिक पूंजी-गहन और समय लेने वाले होते हैं। इन्हें तैयार करने और बिछाने में महीनों या कभी-कभी वर्षों का समय लगता है और इन पर लाखों डॉलर खर्च होते हैं।
भारत के पास वैश्विक स्तर पर केवल 1% केबल लैंडिंग स्टेशन और 3% सबसी केबल सिस्टम ही हैं। फिलहाल, मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर डेटा की वर्तमान मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है और अधिकतर ट्रैफिक इन्हीं के जरिए संचालित होता है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि तेजी से बढ़ते डेटा उपयोग को देखते हुए भविष्य में क्षमता की कमी का सामना करना पड़ सकता है।